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GHAZAL

आसमानों से ज़मीनों को मिलाने वाले

आसमानों से ज़मीनों को मिलाने वाले

झूटे होते हैं ये तक़दीर बताने वाले

अब तो मर जाता है रिश्ता ही बुरे वक़्तों पर

पहले मर जाते थे रिश्तों को निभाने वाले

जो तेरे 'ऐब बताता है उसे मत खोना

अब कहाँ मिलते हैं आईना दिखाने वाले

बन गया ज़हर मिरी लौ का धुआँ रात गए

सुब्ह उठ्ठे ही नहीं मुझ को बुझाने वाले

तुझ में हिम्मत है तो सूरज के मुक़ाबिल भी आ

मेरे मा'सूम चराग़ों को डराने वाले

अब गया है तो पलट कर मुझे आवाज़ न दे

लौट के मत आ मुझे छोड़ के जाने वाले

पर्दे दरवाज़ों पे आँगन में हसीं चेहरे थे

गाँव में घर हुआ करते थे ख़ज़ाने वाले

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आसमानों से ज़मीनों को मिलाने वाले — Shakeel Azmi • ShayariPage