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GHAZAL

कितना ख़ुश-रंग तेरा लहजा है

कितना ख़ुश-रंग तेरा लहजा है

जो तेरी आँख से छलकता है

मैं तो ये जान कर परेशां हूँ

मेरी ख़ातिर कोई सँवरता है

उसका ख़त इक किताब में है उधर

और इधर घर का घर महकता है

इतना आसान तो नही हूँ मैं

जितना आसान तू समझता है

तूने कह तो दिया मुझे पत्थर

मेरे सीने में दिल धड़कता है

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