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GHAZAL

गए थे जंग लड़ने जो कई लश्कर नहीं लौटे

गए थे जंग लड़ने जो कई लश्कर नहीं लौटे

कई के शव नहीं लौटे कई के सर नहीं लौटे

तुम्हारी बात पर आख़िर यक़ीं कर लूँ मगर कैसे

कहा था लौट आओगे मगर कह कर नहीं लौटे

परिंदे शाम होते ही घर अपने लौट आते हैं

हमारी उम्र गुज़री है अभी तक घर नहीं लौटे

तबस्सुम ये तेरा मुझको तुझी तक खींच लाता है

तुझे तो ख़ूब चाहा पर तेरे होकर नहीं लौटे

हमारे दिल में बस जाओ मोहब्बत सीख जाओगे

जो पत्थर दिल भी आए थे वो दिल पत्थर नहीं लौटे

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