ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है Sahir Ludhianvi@sahir-ludhianviज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा