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GHAZAL

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना क़रीब से

देखा है ज़िंदगी को कुछ इतना क़रीब से

चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से

कहने को दिल की बात जिन्हें ढूँडते थे हम

महफ़िल में आ गए हैं वो अपने नसीब से

नीलाम हो रहा था किसी नाज़नीं का प्यार

क़ीमत नहीं चुकाई गई इक ग़रीब से

तेरी वफ़ा की लाश पे ला मैं ही डाल दूँ

रेशम का ये कफ़न जो मिला है रक़ीब से

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