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मेरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे

मेरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे

मेरे भाई मेरे हिस्से की ज़मीं तू रख ले

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मेरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे — Rahat Indori • ShayariPage