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घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया

घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया

घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है

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घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया — Rahat Indori • ShayariPage