यूँ सदा देते हुए तेरे ख़याल आते हैं

यूँ सदा देते हुए तेरे ख़याल आते हैं

जैसे का'बे की खुली छत पे बिलाल आते हैं


रोज़ हम अश्कों से धो आते हैं दीवार-ए-हरम

पगड़ियाँ रोज़ फ़रिश्तों की उछाल आते हैं


हाथ अभी पीछे बंधे रहते हैं चुप रहते हैं

देखना ये है तुझे कितने कमाल आते हैं


चाँद सूरज मिरी चौखट पे कई सदियों से

रोज़ लिक्खे हुए चेहरे पे सवाल आते हैं


बे-हिसी मुर्दा-दिली रक़्स शराबें नग़्मे

बस इसी राह से क़ौमों पे ज़वाल आते हैं