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GHAZAL

उसे अब के वफ़ाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी

उसे अब के वफ़ाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी

मगर इस बार मुझ को अपने घर जाने की जल्दी थी

इरादा था कि मैं कुछ देर तूफ़ाँ का मज़ा लेता

मगर बेचारे दरिया को उतर जाने की जल्दी थी

मैं अपनी मुट्ठियों में क़ैद कर लेता ज़मीनों को

मगर मेरे क़बीले को बिखर जाने की जल्दी थी

मैं आख़िर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता

यहाँ हर एक मौसम को गुज़र जाने की जल्दी थी

वो शाख़ों से जुदा होते हुए पत्तों पे हँसते थे

बड़े ज़िंदा-नज़र थे जिन को मर जाने की जल्दी थी

मैं साबित किस तरह करता कि हर आईना झूटा है

कई कम-ज़र्फ़ चेहरों को उतर जाने की जल्दी थी

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उसे अब के वफ़ाओं से गुज़र जाने की जल्दी थी — Rahat Indori • ShayariPage