सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए

सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए

सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए


पी के जो मस्त हैं उन से तो कोई ख़ौफ़ नहीं

पी के जो होश में हैं उन को सँभाला जाए


आसमाँ ही नहीं इक चाँद भी रहता है यहाँ

भूल कर भी कभी पत्थर न उछाला जाए