GHAZAL•
सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए
By Rahat Indori
सब की पगड़ी को हवाओं में उछाला जाए
सोचता हूँ कोई अख़बार निकाला जाए
पी के जो मस्त हैं उन से तो कोई ख़ौफ़ नहीं
पी के जो होश में हैं उन को सँभाला जाए
आसमाँ ही नहीं इक चाँद भी रहता है यहाँ
भूल कर भी कभी पत्थर न उछाला जाए