Shayari Page
GHAZAL

नए सफ़र का जो एलान भी नहीं होता

नए सफ़र का जो एलान भी नहीं होता

तो ज़िंदा रहने का अरमान भी नहीं होता

तमाम फूल वही लोग तोड़ लेते हैं

वो जिन के कमरों में गुल-दान भी नहीं होता

ख़मोशी ओढ़ के सोई हैं मस्जिदें सारी

किसी की मौत का एलान भी नहीं होता

वबा ने काश हमें भी बुला लिया होता

तो हम पे मौत का एहसान भी नहीं होता

Comments

Loading comments…