GHAZAL•
नए सफ़र का जो एलान भी नहीं होता
By Rahat Indori
नए सफ़र का जो एलान भी नहीं होता
तो ज़िंदा रहने का अरमान भी नहीं होता
तमाम फूल वही लोग तोड़ लेते हैं
वो जिन के कमरों में गुल-दान भी नहीं होता
ख़मोशी ओढ़ के सोई हैं मस्जिदें सारी
किसी की मौत का एलान भी नहीं होता
वबा ने काश हमें भी बुला लिया होता
तो हम पे मौत का एहसान भी नहीं होता