नए सफ़र का जो एलान भी नहीं होता

नए सफ़र का जो एलान भी नहीं होता

तो ज़िंदा रहने का अरमान भी नहीं होता


तमाम फूल वही लोग तोड़ लेते हैं

वो जिन के कमरों में गुल-दान भी नहीं होता


ख़मोशी ओढ़ के सोई हैं मस्जिदें सारी

किसी की मौत का एलान भी नहीं होता


वबा ने काश हमें भी बुला लिया होता

तो हम पे मौत का एहसान भी नहीं होता