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GHAZAL

काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने

काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने

तेरी हर बात पे आमीन कहा है मैं ने

तेरी दस्तार पे तन्क़ीद की हिम्मत तो नहीं

अपनी पा-पोश को क़ालीन कहा है मैं ने

मस्लहत कहिए उसे या कि सियासत कहिए

चील कव्वों को भी शाहीन कहा है मैं ने

ज़ाइक़े बारहा आँखों में मज़ा देते हैं

बाज़ चेहरों को भी नमकीन कहा है मैं ने

तू ने फ़न की नहीं शजरे की हिमायत की है

तेरे एज़ाज़ को तौहीन कहा है मैं ने

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काली रातों को भी रंगीन कहा है मैं ने — Rahat Indori • ShayariPage