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GHAZAL

जो मंसबों के पुजारी पहन के आते हैं

जो मंसबों के पुजारी पहन के आते हैं

कुलाह तौक़ से भारी पहन के आते हैं

अमीर-ए-शहर तिरी तरह क़ीमती पोशाक

मिरी गली में भिकारी पहन के आते हैं

यही अक़ीक़ थे शाहों के ताज की ज़ीनत

जो उँगलियों में मदारी पहन के आते हैं

हमारे जिस्म के दाग़ों पे तब्सिरा करने

क़मीसें लोग हमारी पहन के आते हैं

इबादतों का तहफ़्फ़ुज़ भी उन के ज़िम्मे है

जो मस्जिदों में सफ़ारी पहन के आते हैं

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जो मंसबों के पुजारी पहन के आते हैं — Rahat Indori • ShayariPage