हों लाख ज़ुल्म मगर बद-दुआ' नहीं देंगे

हों लाख ज़ुल्म मगर बद-दुआ' नहीं देंगे

ज़मीन माँ है ज़मीं को दग़ा नहीं देंगे


हमें तो सिर्फ़ जगाना है सोने वालों को

जो दर खुला है वहाँ हम सदा नहीं देंगे


रिवायतों की सफ़ें तोड़ कर बढ़ो वर्ना

जो तुम से आगे हैं वो रास्ता नहीं देंगे


यहाँ कहाँ तिरा सज्जादा आ के ख़ाक पे बैठ

कि हम फ़क़ीर तुझे बोरिया नहीं देंगे


शराब पी के बड़े तजरबे हुए हैं हमें

शरीफ़ लोगों को हम मशवरा नहीं देंगे