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GHAZAL

हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की

हम ने ख़ुद अपनी रहनुमाई की

और शोहरत हुई ख़ुदाई की

मैं ने दुनिया से मुझ से दुनिया ने

सैकड़ों बार बेवफ़ाई की

खुले रहते हैं सारे दरवाज़े

कोई सूरत नहीं रिहाई की

टूट कर हम मिले हैं पहली बार

ये शुरूआ'त है जुदाई की

सोए रहते हैं ओढ़ कर ख़ुद को

अब ज़रूरत नहीं रज़ाई की

मंज़िलें चूमती हैं मेरे क़दम

दाद दीजे शिकस्ता-पाई की

ज़िंदगी जैसे-तैसे काटनी है

क्या भलाई की क्या बुराई की

इश्क़ के कारोबार में हम ने

जान दे कर बड़ी कमाई की

अब किसी की ज़बाँ नहीं खुलती

रस्म जारी है मुँह-भराई की

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