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GHAZAL

चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया

चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया

आईना सारे शहर की बीनाई ले गया

डूबे हुए जहाज़ पे क्या तब्सिरा करें

ये हादिसा तो सोच की गहराई ले गया

हालाँकि बे-ज़बान था लेकिन अजीब था

जो शख़्स मुझ से छीन के गोयाई ले गया

मैं आज अपने घर से निकलने न पाऊँगा

बस इक क़मीस थी जो मिरा भाई ले गया

'ग़ालिब' तुम्हारे वास्ते अब कुछ नहीं रहा

गलियों के सारे संग तो सौदाई ले गया

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चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया — Rahat Indori • ShayariPage