"पराधीन भारत में भगतसिंह"
"पराधीन भारत में भगतसिंह"
आबोहवा ज़हर है
चारों तरफ़ क़हर है
आलम नहीं है ऐसा
कि इश्क़ कर सकूँ मैं
मैं तुझ पे मर तो जाता
पर क्या करूँ मेरी जाँ
हालात ऐसे ना हैं
कि तुझ पे मर सकूँ मैं
ये ख़ून भीगी होली
ये सर कटी बैसाखी
ऐसे में तेरी चुनरी
क्या सूँघ पाऊँगा मैं?
ये माँग उजड़ा टीका
ये सुन्न बैठी ममता
ऐसे में तेरे कंगन
क्या चूम पाऊँगा मैं
ईसा की ले गवाही
गौतम की ले गवाही
हज़रत कबीर नानक
के मन की ले गवाही
मीरा क़सम है मुझको
राधा क़सम है मुझको
है दूसरा जनम तो
लेना जनम है मुझको
उस दूसरे जनम में
सिंदूर लाऊँगा मैं
तेरी क़सम कि डोला
तेरा उठाऊँगा मैं