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NAZM

ओ रात के मुसाफ़िर

ओ रात के मुसाफ़िर

तू भागना संभल के

पोटली में तेरी हो

आग ना संभल के

चल तो तू पड़ा है

फ़ासला बड़ा है

जान ले अंधेरे के

सर पे ख़ूं चढ़ा है

मुकाम खोज ले तू

इनसान के शहर में

इनसान खोज ले तू

देख तेरी ठोकर से

राह का वो पत्थर

माथे पे तेरे कस के

लग जाए ना उछल के

ओ रात के मुसाफ़िर

माना कि जो हुआ है

वो तूने ही किया है

इन्होंने भी किया है

उन्होंने भी किया है

माना कि तूने हां-हां

चाहा नहीं था लेकिन

तू जानता नहीं कि ये

कैसे हो गया है

लेकिन तू फिर भी सुन ले

नहीं सुनेगा कोई

तुझे ये सारी दुनिया

खा जाएगी निगल के

ओ रात के मुसाफ़िर

तू भागना संभल के

पोटली में तेरी हो

आग ना संभल के

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ओ रात के मुसाफ़िर — Piyush Mishra • ShayariPage