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NAZM

अभी मैं ने दहलीज़ पर पाँव रक्खा ही था कि

अभी मैं ने दहलीज़ पर पाँव रक्खा ही था कि

किसी ने मिरे सर पे फूलों भरा थाल उल्टा दिया

मेरे बालों पे आँखों पे पलकों पे, होंटों पे

माथे पे, रुख़्सार पर

फूल ही फूल थे

दो बहुत मुस्कुराते हुए होंट

मेरे बदन पर मोहब्बत की गुलनार मोहरों को यूँ सब्त करते

चले जा रहे थे

कि जैसे अबद तक

मिरी एक इक पोर का इंतिसाब

अपनी ज़ेबाई के नाम ले कर रहेंगे

मुझे अपने अंदर समो कर रहेंगे!

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अभी मैं ने दहलीज़ पर पाँव रक्खा ही था कि — Parveen Shakir • ShayariPage