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NAZM

तुम मुझ को गुड़िया कहते हो

तुम मुझ को गुड़िया कहते हो

ठीक ही कहते हो!

खेलने वाले सब हाथों को मैं गुड़िया ही लगती हूँ

जो पहना दो मुझ पे सजेगा

मेरा कोई रंग नहीं

जिस बच्चे के हाथ थमा दो

मेरी किसी से जंग नहीं

सोचती जागती आँखें मेरी

जब चाहे बीनाई ले लो

कूक भरो और बातें सुन लो

या मेरी गोयाई ले लो

माँग भरो सिन्दूर लगाओ

प्यार करो आँखों में बसाओ

और फिर जब दिल भर जाए तो

दिल से उठा के ताक़ पे रख दो

तुम मुझ को गुड़िया कहते हो

ठीक ही कहते हो!

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तुम मुझ को गुड़िया कहते हो — Parveen Shakir • ShayariPage