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NAZM

नहीं मेरा आँचल मेला है

नहीं मेरा आँचल मेला है

और तेरी दस्तार के सारे पेच अभी तक तीखे हैं

किसी हवा ने इन को अब तक छूने की जुरअत नहीं की है

तेरी उजली पेशानी पर

गए दिनों की कोई घड़ी

पछतावा बन के नहीं फूटी

और मेरे माथे की सियाही

तुझ से आँख मिला कर बात नहीं कर सकती

अच्छे लड़के

मुझे न ऐसे देख

अपने सारे जुगनू सारे फूल

सँभाल के रख ले

फटे हुए आँचल से फूल गिर जाते हैं

और जुगनू

पहला मौक़ा पाते ही उड़ जाते हैं

चाहे ओढ़नी से बाहर की धूप कितनी ही कड़ी हो!

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नहीं मेरा आँचल मेला है — Parveen Shakir • ShayariPage