Shayari Page
NAZM

आँख बोझल है

आँख बोझल है

मगर नींद नहीं आती है

मेरी गर्दन में हमाइल तिरी बाँहें जो नहीं

किसी करवट भी मुझे चैन नहीं पड़ता है

सर्द पड़ती हुई रात

माँगने आई है फिर मुझ से

तिरे नर्म बदन की गर्मी

और दरीचों से झिझकती हुई आहिस्ता हवा

खोजती है मिरे ग़म-ख़ाने में

तेरी साँसों की गुलाबी ख़ुश्बू!

मेरा बिस्तर ही नहीं

दिल भी बहुत ख़ाली है

इक ख़ला है कि मिरी रूह में दहशत की तरह उतरा है

तेरा नन्हा सा वजूद

कैसे उस ने मुझे भर रक्खा था

तिरे होते हुए दुनिया से तअल्लुक़ की ज़रूरत ही न थी

सारी वाबस्तगियाँ तुझ से थीं

तू मिरी सोच भी, तस्वीर भी और बोली भी

मैं तिरी माँ भी, तिरी दोस्त भी हम-जोली भी

तेरे जाने पे खुला

लफ़्ज़ ही कोई मुझे याद नहीं

बात करना ही मुझे भूल गया!

तू मिरी रूह का हिस्सा था

मिरे चारों तरफ़

चाँद की तरह से रक़्साँ था मगर

किस क़दर जल्द तिरी हस्ती ने

मिरे अतराफ़ में सूरज की जगह ले ली है

अब तिरे गिर्द मैं रक़्सिंदा हूँ!

वक़्त का फ़ैसला था

तिरे फ़र्दा की रिफ़ाक़त के लिए

मेरा इमरोज़ अकेला रह जाए

मिरे बच्चे, मिरे लाल

फ़र्ज़ तो मुझ को निभाना है मगर

देख कि कितनी अकेली हूँ मैं!

Comments

Loading comments…