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GHAZAL

तराश कर मेरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया

तराश कर मेरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया

हवा के पास बरहना कमान छोड़ गया

रफ़ाक़तों का मेरी उस को ध्यान कितना था

ज़मीन ले ली मगर आसमान छोड़ गया

अजीब शख़्स था बारिश का रंग देख के भी

खुले दरीचे पे इक फूल-दान छोड़ गया

जो बादलों से भी मुझ को छुपाए रखता था

बढ़ी है धूप तो बे-साएबान छोड़ गया

निकल गया कहीं अन-देखे पानियों की तरफ़

ज़मीं के नाम खुला बादबान छोड़ गया

उक़ाब को थी ग़रज़ फ़ाख़्ता पकड़ने से

जो गिर गई तो यूँही नीम-जान छोड़ गया

न जाने कौन सा आसेब दिल में बस्ता है

कि जो भी ठहरा वो आख़िर मकान छोड़ गया

अक़ब में गहरा समुंदर है सामने जंगल

किस इंतिहा पे मेरा मेहरबान छोड़ गया

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तराश कर मेरे बाज़ू उड़ान छोड़ गया — Parveen Shakir • ShayariPage