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GHAZAL

अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे

अपनी तन्हाई मिरे नाम पे आबाद करे

कौन होगा जो मुझे उस की तरह याद करे

दिल अजब शहर कि जिस पर भी खुला दर इस का

वो मुसाफ़िर इसे हर सम्त से बरबाद करे

अपने क़ातिल की ज़ेहानत से परेशान हूँ मैं

रोज़ इक मौत नए तर्ज़ की ईजाद करे

इतना हैराँ हो मिरी बे-तलबी के आगे

वा क़फ़स में कोई दर ख़ुद मिरा सय्याद करे

सल्ब-ए-बीनाई के अहकाम मिले हैं जो कभी

रौशनी छूने की ख़्वाहिश कोई शब-ज़ाद करे

सोच रखना भी जराएम में है शामिल अब तो

वही मासूम है हर बात पे जो साद करे

जब लहू बोल पड़े उस के गवाहों के ख़िलाफ़

क़ाज़ी-ए-शहर कुछ इस बाब में इरशाद करे

उस की मुट्ठी में बहुत रोज़ रहा मेरा वजूद

मेरे साहिर से कहो अब मुझे आज़ाद करे

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