आँखों के लिए जश्न का पैग़ाम तो आया

आँखों के लिए जश्न का पैग़ाम तो आया

ताख़ीर से ही चाँद लब-ए-बाम तो आया


उस बाग़ में इक फूल खिला मेरे लिए भी

ख़ुशबू की कहानी में मेरा नाम तो आया


पतझड़ का ज़माना था तो ये बख़्त हमारा

सैर-ए-चमन-ए-दिल को वो गुलफ़ाम तो आया


उड़ जाएगा फिर अपनी हवाओं में तो क्या ग़म

वो ताइर-ए-ख़ुश-रंग तह-ए-दाम तो आया


हर चंद कि कम अरसा-ए-ज़ेबाई में ठहरा

हर चेहरा-ए-गुल बाग़ के कुछ काम तो आया


शब से भी गुज़र जाएँगे गर तेरी रज़ा हो

दौरान-ए-सफ़र मरहला-ए-शाम तो आया