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NAZM

"फ़ातिहा"

"फ़ातिहा"

अगर क़ब्रिस्तान में

अलग अलग कत्बे न हों

तो हर क़ब्र में

एक ही ग़म सोया हुआ रहता है

किसी माँ का बेटा

किसी भाई की बहन

किसी आशिक़ की महबूबा

तुम!

किसी क़ब्र पर भी फ़ातिहा पढ़ के चले जाओ

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"फ़ातिहा" — Nida Fazli • ShayariPage