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GHAZAL

ये जो फैला हुआ ज़माना है

ये जो फैला हुआ ज़माना है

इस का रक़्बा ग़रीब-ख़ाना है

कोई मंज़र सदा नहीं रहता

हर तअ'ल्लुक़ मुसाफ़िराना है

देस परदेस क्या परिंदों का

आब-ओ-दाना ही आशियाना है

कैसी मस्जिद कहाँ का बुत-ख़ाना

हर जगह उस का आस्ताना है

इश्क़ की उम्र कम ही होती है

बाक़ी जो कुछ है दोस्ताना है

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ये जो फैला हुआ ज़माना है — Nida Fazli • ShayariPage