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GHAZAL

ठहरे जो कहीं आँख तमाशा नज़र आए

ठहरे जो कहीं आँख तमाशा नज़र आए

सूरज में धुआँ चाँद में सहरा नज़र आए

रफ़्तार से ताबिंदा उमीदों के झरोके

ठहरूँ तो हर इक सम्त अँधेरा नज़र आए

साँचों में ढले क़हक़हे सोची हुई बातें

हर शख़्स के काँधों पे जनाज़ा नज़र आए

हर राहगुज़र रास्ता भूला हुआ बालक

हर हाथ में मिट्टी का खिलौना नज़र आए

खोई हैं अभी मैं के धुँदलकों में निगाहें

हट जाए ये दीवार तो दुनिया नज़र आए

जिस से भी मिलें झुक के मिलें हँस के हों रुख़्सत

अख़्लाक़ भी इस शहर में पेशा नज़र आए

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ठहरे जो कहीं आँख तमाशा नज़र आए — Nida Fazli • ShayariPage