Shayari Page
GHAZAL

सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना

सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना

क़दम यक़ीन में मंज़िल गुमान में रखना

जो साथ है वही घर का नसीब है लेकिन

जो खो गया है उसे भी मकान में रखना

जो देखती हैं निगाहें वही नहीं सब कुछ

ये एहतियात भी अपने बयान में रखा

वो एक ख़्वाब जो चेहरा कभी नहीं बनता

बना के चाँद उसे आसमान में रखना

चमकते चाँद-सितारों का क्या भरोसा है

ज़मीं की धूल भी अपनी उड़ान में रखना

Comments

Loading comments…
सफ़र को जब भी किसी दास्तान में रखना — Nida Fazli • ShayariPage