राक्षस था न ख़ुदा था पहले

राक्षस था न ख़ुदा था पहले

आदमी कितना बड़ा था पहले


आसमाँ खेत समुंदर सब लाल

ख़ून काग़ज़ पे उगा था पहले


मैं वो मक़्तूल जो क़ातिल न बना

हाथ मेरा भी उठा था पहले


अब किसी से भी शिकायत न रही

जाने किस किस से गिला था पहले


शहर तो बा'द में वीरान हुआ

मेरा घर ख़ाक हुआ था पहले