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GHAZAL

राक्षस था न ख़ुदा था पहले

राक्षस था न ख़ुदा था पहले

आदमी कितना बड़ा था पहले

आसमाँ खेत समुंदर सब लाल

ख़ून काग़ज़ पे उगा था पहले

मैं वो मक़्तूल जो क़ातिल न बना

हाथ मेरा भी उठा था पहले

अब किसी से भी शिकायत न रही

जाने किस किस से गिला था पहले

शहर तो बा'द में वीरान हुआ

मेरा घर ख़ाक हुआ था पहले

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