Shayari Page
GHAZAL

फिर गोया हुई शाम परिंदों की ज़बानी

फिर गोया हुई शाम परिंदों की ज़बानी

आओ सुनें मिट्टी से ही मिट्टी की कहानी

वाक़िफ़ नहीं अब कोई समुंदर की ज़बाँ से

सदियों की मसाफ़त को सुनाता तो है पानी

उतरे कोई महताब कि कश्ती हो तह-ए-आब

दरिया में बदलती नहीं दरिया की रवानी

कहता है कोई कुछ तो समझता है कोई कुछ

लफ़्ज़ों से जुदा हो गए लफ़्ज़ों के मआ'नी

इस बार तो दोनों थे नई राहों के राही

कुछ दूर ही हमराह चलें यादें पुरानी

Comments

Loading comments…
फिर गोया हुई शाम परिंदों की ज़बानी — Nida Fazli • ShayariPage