मन बै-रागी तन अनूरागी क़दम क़दम दुश्वारी है

मन बै-रागी तन अनूरागी क़दम क़दम दुश्वारी है

जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फ़नकारी है


औरों जैसे हो कर भी हम बा-इज़्ज़त हैं बस्ती में

कुछ लोगों का सीधा-पन है कुछ अपनी अय्यारी है


जब जब मौसम झूमा हम ने कपड़े फाड़े शोर किया

हर मौसम शाइस्ता रहना कोरी दुनिया-दारी है


ऐब नहीं है इस में कोई लाल-परी न फूल-कली

ये मत पूछो वो अच्छा है या अच्छी नादारी है


जो चेहरा देखा वो तोड़ा नगर नगर वीरान किए

पहले औरों से ना-ख़ुश थे अब ख़ुद से बे-ज़ारी है