Shayari Page
GHAZAL

मैं अपने इख़्तियार में हूँ भी नहीं भी हूँ

मैं अपने इख़्तियार में हूँ भी नहीं भी हूँ

दुनिया के कारोबार में हूँ भी नहीं भी हूँ

तेरी ही जुस्तुजू में लगा है कभी कभी

मैं तेरे इंतिज़ार में हूँ भी नहीं भी हूँ

फ़िहरिस्त मरने वालों की क़ातिल के पास है

मैं अपने ही मज़ार में हूँ भी नहीं भी हूँ

औरों के साथ ऐसा कोई मसअला नहीं

इक मैं ही इस दयार में हूँ भी नहीं भी हूँ

मुझ से ही है हर एक सियासत का ए'तिबार

फिर भी किसी शुमार में हूँ भी नहीं भी हूँ

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