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GHAZAL

कोई नहीं है आने वाला फिर भी कोई आने को है

कोई नहीं है आने वाला फिर भी कोई आने को है

आते जाते रात और दिन में कुछ तो जी बहलाने को है

चलो यहाँ से अपनी अपनी शाख़ों पे लौट आए परिंदे

भूली-बिसरी यादों को फिर तन्हाई दोहराने को है

दो दरवाज़े एक हवेली आमद रुख़्सत एक पहेली

कोई जा कर आने को है कोई आ कर जाने को है

दिन भर का हंगामा सारा शाम ढले फिर बिस्तर प्यारा

मेरा रस्ता हो या तेरा हर रस्ता घर जाने को है

आबादी का शोर-शराबा छोड़ के ढूँडो कोई ख़राबा

तन्हाई फिर शम्अ जला कर कोई हर्फ़ सुनाने को है

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कोई नहीं है आने वाला फिर भी कोई आने को है — Nida Fazli • ShayariPage