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GHAZAL

किसी से ख़ुश है किसी से ख़फ़ा ख़फ़ा सा है

किसी से ख़ुश है किसी से ख़फ़ा ख़फ़ा सा है

वो शहर में अभी शायद नया नया सा है

न जाने कितने बदन वो पहन के लेटा है

बहुत क़रीब है फिर भी छुपा छुपा सा है

सुलगता शहर नदी ख़ून कब की बातें हैं

कहीं कहीं से ये क़िस्सा सुना सुना सा है

सरों के सींग तो जंगल की देन होते हैं

वो आदमी तो है लेकिन डरा डरा सा है

कुछ और धूप तो हो ओस सूख जाने तक

वो पेड़ अब के बरस भी हरा हरा सा है

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किसी से ख़ुश है किसी से ख़फ़ा ख़फ़ा सा है — Nida Fazli • ShayariPage