GHAZAL•
कच्चे बख़िये की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं
By Nida Fazli
कच्चे बख़िये की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं
लोग मिलते हैं मगर मिल के बिछड़ जाते हैं
यूँ हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों
रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं
छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत
धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं
भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में
बे-ख़याली में कई शहर उजड़ जाते हैं