Shayari Page
GHAZAL

कच्चे बख़िये की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं

कच्चे बख़िये की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं

लोग मिलते हैं मगर मिल के बिछड़ जाते हैं

यूँ हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों

रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं

छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत

धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं

भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में

बे-ख़याली में कई शहर उजड़ जाते हैं

Comments

Loading comments…
कच्चे बख़िये की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं — Nida Fazli • ShayariPage