कच्चे बख़िये की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं

कच्चे बख़िये की तरह रिश्ते उधड़ जाते हैं

लोग मिलते हैं मगर मिल के बिछड़ जाते हैं


यूँ हुआ दूरियाँ कम करने लगे थे दोनों

रोज़ चलने से तो रस्ते भी उखड़ जाते हैं


छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत

धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं


भीड़ से कट के न बैठा करो तन्हाई में

बे-ख़याली में कई शहर उजड़ जाते हैं