GHAZAL•
दो चार गाम राह को हमवार देखना
By Nida Fazli
दो चार गाम राह को हमवार देखना
फिर हर क़दम पे इक नई दीवार देखना
आँखों की रौशनी से है हर संग आईना
हर आइने में ख़ुद को गुनहगार देखना
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना
मैदाँ की हार जीत तो क़िस्मत की बात है
टूटी है किस के हाथ में तलवार देखना
दरिया के इस किनारे सितारे भी फूल भी
दरिया चढ़ा हुआ हो तो उस पार देखना
अच्छी नहीं है शहर के रस्तों से दोस्ती
आँगन में फैल जाए न बाज़ार देखना