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SHER

धूप को साया ज़मीं को आसमाँ करती है माँ

धूप को साया ज़मीं को आसमाँ करती है माँ

हाथ रखकर मेरे सर पर सायबाँ करती है माँ

मेरी ख़्वाहिश और मेरी ज़िद उसके क़दमों पर निसार

हाँ की गुंज़ाइश न हो तो फिर भी हाँ करती है माँ

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