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NAZM

"मुहब्बत"

"मुहब्बत"

मेरे पास एक पिंजरा है

और उसमे एक परिंदा है

उसे भी प्यार है मुझ से

मुझे भी प्यार है उस से

मेरे पिंजरे का दरवाज़ा

खुला रहता है उसके वास्ते हरदम

न पर कतरे कभी उसके

न पर बाँधे कभी मैंने

वो उड़ता है

मगर फिर लौटकर पिंजरे में आता है

ज़माने को ये हैरत है

कि ये उड़ क्यूँ नहीं जाता

ज़माने को ये बतलाओ

ज़माने को ये समझाओ

कि मैंने उसके पैरों में

मुहब्बत बाँध रक्खी है

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"मुहब्बत" — Nawaz Deobandi • ShayariPage