Shayari Page
GHAZAL

मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहते

मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहते

दो चार क़दम चलने को चलना नहीं कहते

इक हम हैं कि ग़ैरों को भी कह देते हैं अपना

इक तुम हो कि अपनों को भी अपना नहीं कहते

कम-हिम्मती ख़तरा है समुंदर के सफ़र में

तूफ़ान को हम दोस्तो ख़तरा नहीं कहते

बन जाए अगर बात तो सब कहते हैं क्या क्या

और बात बिगड़ जाए तो क्या क्या नहीं कहते

Comments

Loading comments…
मंज़िल पे न पहुँचे उसे रस्ता नहीं कहते — Nawaz Deobandi • ShayariPage