NAZM•
सृजन
By Murli Dhakad
सृजन
पेड़ ने अपनी दास्तान किसी पत्ते पर लिखी थोड़ी है
या मिट्टी ने अपने नाम का घर बनाया है कहीं
कि समंदर ने छुपा के रखी हो भविष्य के लिए अपने अंदर कुछ नदियां
नदियां जो आई अपना समय छोड़ कर आई
पत्ते जो टूटे तो कहीं कोई नमी न थी
शायद आसान है प्रकृति होना
शायद मुश्किल है इंसान होना
मुझे अपना प्रकृति होना मंजूर है
मुझे अपना इंसान होना पसंद नहीं