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NAZM

मुक्ति

मुक्ति

तुम्हें पत्थर की ठोकर लगी

और पत्थर को तुम्हारी

न जाने कितने लोग संभले होंगे

न जाने कितने गिरे होंगे

आगे बढ़ तो सभी गए हैं

पत्थर वहीं रह गया है

बस गया है

अब शायद कोई ठोकर ऐसी लगे जो उखाड़ दे

और मुक्ति मिले।

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मुक्ति — Murli Dhakad • ShayariPage