Shayari Page
NAZM

मुक्ति

मुक्ति

तुम्हें पत्थर की ठोकर लगी

और पत्थर को तुम्हारी

न जाने कितने लोग संभले होंगे

न जाने कितने गिरे होंगे

आगे बढ़ तो सभी गए हैं

पत्थर वहीं रह गया है

बस गया है

अब शायद कोई ठोकर ऐसी लगे जो उखाड़ दे

और मुक्ति मिले।

Comments

Loading comments…