मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं

मैंने कल शब चाहतों की सब किताबें फाड़ दीं

सिर्फ़ इक काग़ज़ पे लिक्खा लफ़्ज़-ए-माँ रहने दिया