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ख़ामुशी कब चीख़ बन जाए किसे मालूम है

ख़ामुशी कब चीख़ बन जाए किसे मालूम है

ज़ुल्म कर लो जब तलक ये बे-ज़बानी और है

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ख़ामुशी कब चीख़ बन जाए किसे मालूम है — Munawwar Rana • ShayariPage