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GHAZAL

ये दरवेशों की बस्ती है यहाँ ऐसा नहीं होगा

ये दरवेशों की बस्ती है यहाँ ऐसा नहीं होगा

लिबास-ए-ज़िंदगी फट जाएगा मैला नहीं होगा

शेयर-बाज़ार में क़ीमत उछलती गिरती रहती है

मगर ये ख़ून-ए-मुफ़्लिस है कभी महँगा नहीं होगा

तिरे एहसास की ईंटें लगी हैं इस इमारत में

हमारा घर तिरे घर से कभी ऊँचा नहीं होगा

हमारी दोस्ती के बीच ख़ुद-ग़र्ज़ी भी शामिल है

ये बे-मौसम का फल है ये बहुत मीठा नहीं होगा

पुराने शहर के लोगों में इक रस्म-ए-मुरव्वत है

हमारे पास आ जाओ कभी धोका नहीं होगा

ये ऐसी चोट है जिस को हमेशा दुखते रहना है

ये ऐसा ज़ख़्म है जो उम्र भर अच्छा नहीं होगा

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ये दरवेशों की बस्ती है यहाँ ऐसा नहीं होगा — Munawwar Rana • ShayariPage