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GHAZAL

वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है

वो बिछड़ कर भी कहाँ मुझ से जुदा होता है

रेत पर ओस से इक नाम लिखा होता है

ख़ाक आँखों से लगाई तो ये एहसास हुआ

अपनी मिट्टी से हर इक शख़्स जुड़ा होता है

सारी दुनिया का सफ़र ख़्वाब में कर डाला है

कोई मंज़र हो मिरा देखा हुआ होता है

मैं भुलाना भी नहीं चाहता इस को लेकिन

मुस्तक़िल ज़ख़्म का रहना भी बुरा होता है

ख़ौफ़ में डूबे हुए शहर की क़िस्मत है यही

मुंतज़िर रहता है हर शख़्स कि क्या होता है

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