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GHAZAL

फिर से बदल के मिट्टी की सूरत करो मुझे

फिर से बदल के मिट्टी की सूरत करो मुझे

इज़्ज़त के साथ दुनिया से रुख़्सत करो मुझे

मैं ने तो तुम से की ही नहीं कोई आरज़ू

पानी ने कब कहा था कि शर्बत करो मुझे

कुछ भी हो मुझ को एक नई शक्ल चाहिए

दीवार पर बिछाओ मुझे छत करो मुझे

जन्नत पुकारती है कि मैं हूँ तिरे लिए

दुनिया ब-ज़िद है मुझ से कि जन्नत करो मुझे

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फिर से बदल के मिट्टी की सूरत करो मुझे — Munawwar Rana • ShayariPage