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GHAZAL

नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गए होते

नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गए होते

ये सारे लहलहाते खेत बंजर हो गए होते

तेरे दामन से सारी शहर को सैलाब से रोका

नहीं तो मैरे ये आंसू समन्दर हो गए होते

तुम्हें अहले सियासत ने कहीं का भी नहीं रक्खा

हमारे साथ रहते तो सुख़नवर हो गए होते

अगर आदाब कर लेते तो मसनद मिल गई होती

अगर लहजा बदल लेते गवर्नर हो गए होते

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नहीं होती अगर बारिश तो पत्थर हो गए होते — Munawwar Rana • ShayariPage