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GHAZAL

मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता

मिट्टी में मिला दे कि जुदा हो नहीं सकता

अब इस से ज़ियादा मैं तिरा हो नहीं सकता

दहलीज़ पे रख दी हैं किसी शख़्स ने आँखें

रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता

बस तू मिरी आवाज़ से आवाज़ मिला दे

फिर देख कि इस शहर में क्या हो नहीं सकता

ऐ मौत मुझे तू ने मुसीबत से निकाला

सय्याद समझता था रिहा हो नहीं सकता

इस ख़ाक-ए-बदन को कभी पहुँचा दे वहाँ भी

क्या इतना करम बाद-ए-सबा हो नहीं सकता

पेशानी को सज्दे भी अता कर मिरे मौला

आँखों से तो ये क़र्ज़ अदा हो नहीं सकता

दरबार में जाना मिरा दुश्वार बहुत है

जो शख़्स क़लंदर हो गदा हो नहीं सकता

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