Shayari Page
GHAZAL

किसी ग़रीब की बरसों की आरज़ू हो जाऊँ

किसी ग़रीब की बरसों की आरज़ू हो जाऊँ

मैं इस सुरंग से निकलूँ तू आब-जू हो जाऊँ

बड़ा हसीन तक़द्दुस है उस के चेहरे पर

मैं उस की आँखों में झाँकूँ तो बा-वज़ू हो जाऊँ

मुझे पता तो चले मुझ में ऐब हैं क्या क्या

वो आइना है तो मैं उस के रू-ब-रू हो जाऊँ

किसी तरह भी ये वीरानियाँ हों ख़त्म मिरी

शराब-ख़ाने के अंदर की हाव-हू जाऊँ

मिरी हथेली पे होंटों से ऐसी मोहर लगा

कि उम्र-भर के लिए मैं भी सुर्ख़-रू हो जाऊँ

कमी ज़रा सी भी मुझ में न कोई रह जाए

अगर मैं ज़ख़्म की सूरत हूँ तो रफ़ू हो जाऊँ

नए मिज़ाज के शहरों में जी नहीं लगता

पुराने वक़्तों का फिर से मैं लखनऊ हो जाऊँ

Comments

Loading comments…